Tuesday, 12 February 2013


वाणिज्यिक कर विभाग द्वारा बिल्डरों के यहां मारे गए छापों में कई जगह सामने आया है कि फ्लैट खरीदने वालों से अधिक वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) लिया जा रहा है। ऐसा ग्राहकों को नियमों की जानकारी नहीं होने के चलते हो रहा है। कुछ जगह तो सामने आया कि बिल्डर रजिस्टर्ड ही नहीं हैं फिर भी वैट वसूल रहा है, जो सीधे-सीधे उसकी जेब में जा रहा है। विभाग के जानकार भी इन छापों में सामने आई बातों से हैरान हैं कि किस तरह नियमों की आड़ में ग्राहकों से टैक्स के रूप में अतिरिक्त राशि वसूली जा रही है। 

यह है वैट का नियम 

बिल्डर के लिए पांच फीसदी वैट देय है। यह 1 अप्रैल 2011 से लगा है। बिल्डर को बिल्डिंग बनाने में लगी कीमत व ग्राहक से लिए गए मुनाफे के योग पर टैक्स देना है। इसमें जमीन की कीमत को अलग किया गया है। फ्लैट की गाइडलाइन या रजिस्ट्री में उल्लेखित कीमत में से गाइडलाइन के हिसाब से जमीन की वर्तमान कीमत को घटाकर शेष मूल्य पर वैट लिया जाएगा। 

> अभी सामान्य तौर पर बिल्डर जमीन फ्लैट बनाने की कीमत अपना मुनाफा तीनों जोड़कर टैक्स लेता है। मान लीजिए किसी मल्टी में 50 फ्लैट हैं और मल्टी एक करोड़ मूल्य की जमीन पर बनी है। 

> यदि आपने फ्लट 20 लाख में खरीदा तो इसका पांच फीसदी यानी एक लाख रुपए वैट के रूप में लिया जाता है जबकि 20 लाख में से आनुपातिक रूप से जमीन की कीमत कम होनी थी यानी इसमें से दो लाख रुपए कम कर 18 लाख रुपए पर वैट लिया जाना था। यह करीब 90 हजार रुपए होता है। यानी बिल्डर ने एक फ्लैट पर ग्राहक से दस हजार रुपए और इस तरह 50 फ्लैट की बिक्री पर 5 लाख रुपए अतिरिक्त ले लिए। 


> यदि बिल्डर वाणिज्यिक कर विभाग में पंजीकृत नहीं है, तो 50 फ्लैट पर ग्राहकों से वैट के रूप में करीब 50 लाख रुपए लेकर सीधे अपनी जेब में डाल लिए। 

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